स्ट्रैंथ ट्रेनिंग क्यों जरूरी
Grihshobha - Hindi|November Second 2024
इस ढकोसलेबाजी को क्यों बंद किया जाए कि जिम जाना या वजन उठाना महिलाओं का काम नहीं.....
सोनिया राणा
स्ट्रैंथ ट्रेनिंग क्यों जरूरी

मेरी दोस्त पूजा की माताजी पिछले दिनों बहुत बीमार रहीं. तरहतरह के टैस्ट बीपी, शुगर मौनिटर सब के बाद आखिर में डाक्टर ने पाया कि वे आर्थ्रोइटिस की बीमारी से पीड़ित हैं, इसलिए उन के पैरों में दर्द, सूजन, थकान लगातार बनी रहती है. फिर साथ ही डाक्टर ने यह भी बताया कि उन के शरीर में मसल स्ट्रैंथ से ज्यादा फैट का वजन है जिस से उनका शरीर उन के ही बोझ को संभाल नहीं पा रहा और जिस से उन को लगातार पैरों में, जोड़ों में दर्द की समस्या बनी हुई है.

शोध बताते हैं कि भारतीय महिलाएं 40-50 की उम्र के बाद फिजिकली कम ऐक्टिव हो जाती हैं जिस से उन की मांसपेशियों की ताकत कम होती है और शरीर में फैट यानी मोटापा घर कर लेता है, जिस से वक्त के साथ बीमारियां उन के शरीर को घेरने लगती हैं. मगर परेशानी यह भी है कि जब उन को वेट ट्रेनिंग के बारे में समझाया जाए तो वे उसे मर्दों का काम बता कर पल्ला झाड़ लेती हैं कि ये औरतों के काम नहीं हैं, औरतें वजन उठाएंगी तो उन का शरीर भी मर्दाना हो जाएगा जबकि औरतों को तभी खूबसूरत समझा जाता है जब वे दुबली पतली, नाजुक और कोमल लगें.

वर्तमान में फोकस करें

पहले समय में महिलाएं हाथ से चक्की पर आटा पीसना, बैठ कर झाडूपोंछा लगाना, फसल काटना, सिर पर वजन रख कर मीलों से जानवरों के लिए चारा और मटकों में पानी लाना जैसे काम करती थीं. ये सभी काम उस वक्त औरतों में ताकत पैदा करने का काम करते थे, जिस से उन का लंबी उम्र तक मसल लौस नहीं होता था.

आप ने देखा होगा बढी 80-90 साल की औरतें अब भी अपने सभी काम करने में सक्षम हैं, जबकि अब 40-50 साल की उम्र की महिलाएं समय से पहले बिस्तर को अपना साथी मान लेती हैं और जब उन को व्यायाम का कहा जाए तो वे दुहाई देने लगती हैं कि पुराने समय में घरेलू काम कर के ही औरतें स्वस्थ रहा करती थीं. मगर उन को समझना और समझाना होगा कि दौर बदला है तो काम के तरीके भी बदले हैं.

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