नैसर्गिक प्रतिभा के धनी राशिद खां ने नौ साल की उम्र में दिल्ली के सीरीफोर्ट सभागार में आइटीसी संगीत सम्मेलन में जब खयाल गायन की पहली प्रस्तुति दी, तो उन्होंने कलानुरागियों को न सिर्फ अचंभित किया बल्कि दिल भी जीता। उसके बाद वे दिनोदिन संगीत के ऊंचे पायदान पर चढ़ते चले गए।
उन्होंने दिग्गज कलाकारों और रसिकों से तो वाहवाही लूटी ही, आम श्रोताओं को भी अपने जादुई गायन से चमत्कृत करते रहे। उन्होंने अपनी दूरदर्शिता से सुरों में जो रंग भरा, वह बेजोड़ था। उनकी ऊर्जा भरी, खनकती आवाज में गजब का मधुर स्वर लगाव था। गायन में इसी करिश्मे ने उन्हें खयाल गायकी की ऊंचाई पर पहुंचा दिया। उनके रसपूर्ण गायन और गमकदार तानों में जो चमत्कार था उसे देखकर लगता था जैसे वर्षा के बूंदों की बौछार हो रही हो । तकरीबन पचास साल तक संगीत के छोटे आयोजनों से लेकर बड़े-बड़े समारोह में एक सी छाप छोड़ने वाले राशिद खां संगीत की दुनिया में बुलंदी से छाए रहे। पूरे देश में उनका गाना सुनने वाले श्रोताओं की भरमार थी। वे जहां भी गाने जाते वहां सुनने वालों का सैलाब उमड़ पड़ता था। खास बात यह है उनको जब भी सुना उनका गायन हमेशा नएपन ओर जोश से भरा पाया।
This story is from the February 05, 2024 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the February 05, 2024 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
'वाह उस्ताद' बोलिए!
पहला ग्रैमी पुरस्कार उन्हें विश्व प्रसिद्ध संगीतकार मिकी हार्ट के साथ काम करके संगीत अलबम के लिए मिला था। उसके बाद उन्होंने कुल चार ग्रैमी जीते
सिने प्रेमियों का महाकुंभ
विविध संस्कृतियों पर आधारित फिल्मों की शैली और फिल्म निर्माण का सबसे बड़ा उत्सव
विश्व चैंपियन गुकेश
18वें साल में काले-सफेद चौखानों का बादशाह बन जाने वाला युवा
सिनेमा, समाज और राजनीति का बाइस्कोप
भारतीय और विश्व सिनेमा पर विद्यार्थी चटर्जी के किए लेखन का तीन खंडों में छपना गंभीर सिने प्रेमियों के लिए एक संग्रहणीय सौगात
रफी-किशोर का सुरीला दोस्ताना
एक की आवाज में मिठास भरी गहराई थी, तो दूसरे की आवाज में खिलंदड़ापन, पर दोनों की तुलना बेमानी
हरफनमौला गायक, नेकदिल इंसान
मोहम्मद रफी का गायन और जीवन समर्पण, प्यार और अनुशासन की एक अभूतपूर्व कहानी
तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे
रफी जैसा बनने में केवल हुनर काम नहीं आता, मेहनत, समर्पण और शख्सियत भी
'इंसानी भावनाओं को पर्दे पर उतारने में बेजोड़ थे राज साहब'
लव स्टोरी (1981), बेताब (1983), अर्जुन (1985), डकैत (1987), अंजाम (1994), और अर्जुन पंडित (1999) जैसी हिट फिल्मों के निर्देशन के लिए चर्चित राहुल रवैल दो बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित हो चुके हैं।
आधी हकीकत, आधा फसाना
राज कपूर की निजी और सार्वजनिक अभिव्यक्ति का एक होना और नेहरूवादी दौर की सिनेमाई छवियां
संभल की चीखती चुप्पियां
संभल में मस्जिद के नीचे मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका के बाद हुई सांप्रदायिकता में एक और कड़ी