सात चरणों में संपन्न हुए अठारहवीं लोकसभा के चुनावों के पहले चरण के बाद ही यह संकेत मिल गया था कि देश की जनता के बड़े हिस्से ने सरकार के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है। बड़ी संख्या में बेरोजगार नौजवान और पहले से ही आंदोलनरत किसानों की इसमें बड़ी भूमिका रही। इस परिघटना से एक तरफ विपक्ष को प्रोत्साहन मिला, वहीं नरेंद्र मोदी खुद ने अल्पसंख्यक मुसलमानों के खिलाफ हिंदू बहुसंख्यवाद के हथियार को चरम सीमा तक जाकर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। उन्हें लगा कि वे नए भारत के "भाग्यविधाता” के सिंहासन से गिरने वाले हैं, तो को "दिव्य अस्तित्व" तक घोषित कर दिया। अगर विपक्ष का गठबंधन समुचित समझदारी के साथ अखिल भारतीय स्तर पर किया गया होता, तो अलग-अलग प्रदेशों के चुनाव परिणामों में इतनी भिन्नता शायद न होती और भाजपा की सीटें काफी कम हो सकती थीं।
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