दोनों के दल कांग्रेसनीत महाविकास अघाड़ी का हिस्सा थे। पवार की राकांपा को 10 और ठाकरे के शिवसेना वाले धड़े को महज 20 सीटें मिली हैं। यह दोनों का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है। पवार के भतीजे युगेंद्र उन्हीं की परंपरागत सीट बारामती पर अपने चाचा अजित पवार से भारी अंतर से हार गए।
यह चुनावी हार इसलिए भी बहुत भारी हैं क्योंकि पहले ही एकनाथ शिंदे और अजित पवार की बगावत के कारण दोनों दल दो फाड़ हो चुके थे। इस विभाजन के चलते शरद पवार और ठाकरे से उन्हीं की पार्टी का नाम और निशान दोनों छिन गया था और पार्टी की असली विरासत के तौर पर उनकी वैधता ही संकट में पड़ गई थी।
आज स्थिति यह है कि शिंदे और अजित पवार के पार्टी तोड़ने और बगावत करने का मुद्दा मतदाताओं के बीच बहस से गायब हो चुका है। जानकारों की मानें, तो विधानसभा चुनावों के नतीजे साफ दिखाते हैं कि महाराष्ट्र के मतदाताओं ने शिवसेना और राकांपा के किन धड़ों को अपनी स्वीकृति दी है। तो क्या यह शरद पवार और उद्धव ठाकरे के सियासी वजूद का अंत है?
राजनीति के जानकारों की मानें, तो 83 वर्ष के पवार अब उम्र की ऐसी ढलान पर हैं कि यह चुनाव शायद उनका अंतिम था। अपनी पार्टी 2012 से चला रहे ठाकरे भी अब अस्वस्थ रह रहे हैं। इसलिए सवाल बना हुआ है कि क्या दोनों नेता 2029 में होने वाले लोकसभा और असेंबली चुनावों में मोर्चा संभाल पाएंगे या नहीं।
उद्धव ठाकरे के लिए राहत की बात बस इतनी सी है कि उनका बेटा आदित्य ठाकरे वर्ली से और चचेरे भाई वरुण सरदेसारी बांद्रा से जीत गए हैं। उन्हें शिवसेना की अगली पीढ़ी का नेतृत्व माना जा रहा है। उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे के लिए भी चुनाव निराशाजनक साबित हुआ। शिवसेना के विकल्प के तौर पर 2006 में राज ने महाराष्ट्र नवनिर्माण पार्टी बनाई थी। उसे इस बार एक भी सीट नहीं मिली। राज के बेटे अमित ठाकरे माहिम से चुनाव लड़कर तीसरे नंबर पर रहे।
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ऐसे दौर में जब गांधी की राजनीति, अर्थनीति, समाजनीति, सर्व धर्म समभाव सबसे देश काफी दूर जा चुका है, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का रंग-ढंग बदलता जा रहा है, समूचे इतिहास की तरह स्वतंत्रता संग्राम के पाठ में नई इबारत लिखी जा रही है, गांधी के छोटे-छोटे किस्सों को बच्चों के मन में उतारने की कोशिश वाकई मार्के की है। नौंवी कक्षा की छात्रा रेवा की 'बापू की डगर' समकालीन भारत में विरली कही जा सकती है।
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वंशी माहेश्वरी भारतीय और विश्व कविता की हिंदी अनुवाद की पत्रिका तनाव लगभग पचास वर्षों से निकालते रहे हैं। सक्षम कवि ने अपने कवि रूप को पीछे रखा और बिना किसी प्रचार-प्रसार के निरंतर काव्य- सजून करते रहे हैं।
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