आज ब्यूटीपार्लर हो या कैमिस्ट शॉप हर जगह शीशियों या डिबियों में जहरीला गोरापन बिकने लगा है. लड़कियां किसी भी शर्त पर, किसी भी कीमत पर गोरा होना चाहती हैं. कुछ गोरेपन की क्रीमें दिमाग पर असर करती हैं. ये आप के सैल्फ एस्टीम को खत्म कर देती हैं. कुछ क्रीमें इस से भी बदतर सीधे आप के चेहरे को बिगाड़ने लग जाती हैं. गोरेपन का दावा करने वाली ऐसी बहुत सी क्रीमें है जिन में खतरनाक कंपोनेंट्स होते हैं.
इन के बहुत से साइड इफैक्ट होते हैं. कई दफा ऐसा भी होता है कि आप कोई क्रीम लगाती हैं तो आप की स्किन और भी ज्यादा काली हो जाती है या इतने सारे मुंहासे अथवा दाने निकलने लगते हैं कि इलाज करना भी मुश्किल हो जाता है.
सांवली रंगत पर बाजारवाद
न्यूजपेपर्स से ले कर टीवी तक में आप को फेयरनेस क्रीम के विज्ञापनों की भरमार देखने को मिल जाएगी और यह सांवली रंगत को ले कर सामाजिक सोच का ही नतीजा है कि आज के समय में गोरा करने वाली फेयरनैस क्रीम बनाने वाली कंपनियों का धंधा खूब फूलफल रहा है.
सदियों से काला रंग समाज में अभिशाप की तरह पनप रहा है जो मानसिक पीड़ा बन कर हर पल दिल को आहत करता है. सांवले रंग को और नीचा दिखाने के लिए विज्ञापन कंपनियों ने कितने ही विज्ञापन बना लिए जिन में आप क्की टीवी स्क्रीन पर खूबसूरत सी लड़कियां अपना दुखड़ा सुना रही होती हैं और गोरे होने की चाहत में चेहरे पर क्रीम मल रही होती हैं. इन विज्ञापनों ने खूबसूरती की अलग परिभाषा गढ़ी है कि यदि आप गोरी हैं तभी खूबसूरत हैं और तभी आप को नौकरी मिल सकती है. तभी आप की शादी भी हो सकती है.
हीन भावना क्यों
क्या यह उन लोगों की व्यक्तिगत जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं जो कुदरत द्वारा काली माटी से बनाएं गए हैं और इस भेदभाव के कारण गोरे रंग को पाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं? गोरेपन की क्रीम से जुड़े विज्ञापन सांवली लड़की के अंदर हीन भावना कौंप्लैक्स भर रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे गोरा दिखने वाले लोगों को ही कामयाब होने का हक है.
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