राजधानी दिल्ली की किसी भी मार्केट में चले जाएं. आप को चमचम करते पार्लरों में दिख जाएंगे जहां सजनेसंवरने युवतियां नहीं बल्कि शानदार एक से एक पालतू कुत्ता लाया जाता है. दिल्ली के धनाढ्य लोग अपनी बड़ीबड़ी गाड़ियों में इन कुत्तों को ले कर आते हैं. इन पार्लरों की परिचारिकाएं बड़े जतन से इन के बाल काटती हैं. स्पा देती हैं यानी नाखून काटने, सजानेसंवारने से ले कर कुत्तों को यहां तरहतरह के व्यायाम भी करवाए जाते हैं. होम सर्विस भी उपलब्ध है जिस के लिए विशेष वैनें बनवाई गई हैं जिन में कुत्तों से संबंधित हर सुविधा उपलब्ध है.
कुत्ता पालना सालों से स्टेटस सिंबल रहा है. सोसाइटी के नामीगिरामी लोगों में पालतुओं का चलन शुरू से रहा है. पिछले कुछेक सालों से मध्यवर्गीय परिवारों में भी इन्हें पालने का चलन बढ़ा है. 'इंडिया इंटरनैशनल पेट ट्रेड फेयर' के आंकड़ों के मुताबिक इस समय देश के सिर्फ 6 मैट्रो शहरों में ही पालतू कुत्तों की संख्या लगभग 40 लाख है. यह संख्या हर साल 10% की दर से बढ़ रही है.
मगर इन पालतू कुत्तों में से छोड़े गए कुत्ते स्ट्रीट डौग बन रहे हैं और लोगों को काट रहे हैं. दिल्ली ही नहीं सारे देश की म्यूनिसिपल कमेटियों के लिए ये सिरदर्द हैं क्योंकि इन्हें मारना संभव नहीं है. उस पर मेनका गांधी जैसे ऐनिमल लवर्स हल्ला मचाने लगते हैं.
ठीक से देखरेख नहीं
जो पाल रहे हैं उन में 10 से 15% संख्या उन लोगों की भी है, जो कुत्ते शुरू में पाल तो लेते हैं पर फिर उन की ठीक से देखरेख नहीं कर पाते और उन्हें सड़क पर छोड़ आते हैं. सड़कों पर सड़क छाप और पालतू कुत्तों के बीच फर्क एकदम साफ नजर आता है. पालतू कुत्ते आमतौर पर प्रशिक्षित होते हैं. उन्हें प्यार और पुचकार की आदत होती है, भूख लगने पर वे खाने पर झपटते नहीं, बल्कि हाथ बढ़ा कर मांगते हैं या फिर आवाज निकालते हैं.
सड़क छाप कुत्तों की तरह वे खूंख्वार नहीं होते. इसलिए जैसे ही किसी पालतू कुत्ते को घर से बाहर निकाल दिया जाता है, वह सड़क पर जीने लायक नहीं रह पाता. उसे सड़क के कुत्ते के नोचनोच कर खा जाते हैं पर खूंख्वार पालतू कुत्ते बच जाते हैं और यही आक्रमण करते हैं.
This story is from the December First 2023 edition of Grihshobha - Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the December First 2023 edition of Grihshobha - Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
स्ट्रैंथ ट्रेनिंग क्यों जरूरी
इस ढकोसलेबाजी को क्यों बंद किया जाए कि जिम जाना या वजन उठाना महिलाओं का काम नहीं.....
लड़कियों को लुभा रहा फोटोग्राफी कैरियर
फोटोग्राफी के क्षेत्र में पहले केवल पुरुषों का अधिकार था, लेकिन अब इस क्षेत्र में लड़कियां भी बाजी मारने लगी हैं....
समय की मांग है डिजिटल डिटौक्स
शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और खुशहाल रहने के लिए बौडी डिटोक्स के साथ डिजिटल डिटौक्स भी जरूरी है....
पीरियडस क्या खाएं क्यो नहीं
मासिकधर्म के दौरान क्या खाना सही रहता है और क्या गलत, यहां जानिए...
पतिपत्नी रिश्ते में जरूरी है स्पेस
जरूरत से ज्यादा रोकटोक रिश्ते की मजबूती को बिगाड़ सकती है. ऐसे में क्या करें कि ताउम्र खुशहाल रहें....
औफिस के पहले दिन ऐसे करें तैयारी
औफिस में पहला दिन है, जानें कुछ जरूरी बातें....
क्या है अटेंशन डेफिसिट हाइपर ऐक्टिविटी डिसऑर्डर
क्या आप का बच्चा जिद्दी है, बातबात पर तोड़फोड़ करता है और खुद को नुकसान पहुंचा लेता है, तो जानिए वजह और निदान....
जब मन हो मंचिंग का
फ़ूड रेसिपीज
सेल सस्ती शौपिंग न पड़ जाए महंगी
अगर आप भी सस्ते के चक्कर में खरीदारी करने का शौक रखते हैं, तो यह जानकारी आप के लिए ही है....
डाइट के लिए बैस्ट है पिस्ता
पिस्ता सिर्फ एक गार्निश नहीं, एक न्यूट्रिशन पावरहाउस है....