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...तो जीवनदाता तुम्हारा आत्मा प्रकट हो जायेगा
सत्संग में हमारे विवेक का दीया जलता है लेकिन हम रक्षा नहीं करते इसलिए बुझ जाता है।
'ऋषि प्रसाद' व सत्साहित्य से बदला नारकीय जीवन
गुरुमंत्र की चिनगारी लेकर उसको फूंकते जाओ तो चाहे कितनी भी वासनारूपी घास हो, जल जायेगी।
भक्तों के भाव स्वीकारते गुरुवर पग-पग पर सहाय करते बन रहबर
भगवान को तुम क्या देते हो इसका महत्त्व नहीं है बल्कि किस भाव से देते हो इसका बड़ा महत्त्व है।
सूर्यदेव ने कार्तिकजी का पूजन रोककर पहले किनको पूजा ?
तुम आत्मदेव में जग जाओ तो वह दिन दूर नहीं कि देवी-देवता तुम्हें रिझाना शुरू कर दें।
शरीर को स्वच्छ व पुष्ट करनेवाला गेहूँ का चोकर
अनुकूलता का सदुपयोग किया तो प्रतिकूलता का असर नहीं होगा।
ईश्वरीय अंश विकसित कर यहीं ईश्वरतुल्य हो जाओ
भोगों से विरक्ति हो रही है तो समझो जगने की तरफ (ईश्वर की ओर) चल रहे हैं।
कसाब के लिए मानवाधिकार है और संत के लिए नहीं ?
जो सच्चे संतों की निंदा करता है, उनको सताता है, वह अपने भाग्य को ठुकराता है, आत्मघात करता है।
परिक्रमा क्यों ?
सत्संग से समत्व योग की कला सुनकर थोड़ा मनन करके अपने व्यवहार में लायें तो व्यवहार भी बंदगी हो जायेगा।
दृढव्रती हो जाओ
अपने वास्तविक स्वरूप में टिकने की दृढ़ता आ जाय तो शांति तो हमारा स्वभाव है।
ऐसा निःस्वार्थ सेवाभाव महान बना देता है
जो चिंता की खाई में नहीं गिरता है उसके हृदय में आनंद का झरना फूट निकलता है।
आशारामजी बापू जेल में नहीं हैं, हमारी संस्कृति की रक्षा-प्रणाली जेल में है : श्री धनंजय देसाई
अधा वृत्राणि जङ्घनाव भूरि ।
'सबकी तृप्ति में अपनी तृप्ति' दीपोत्सव मनाने की गुरुप्यारों की अनोखी है युक्ति
तुम्हारे जीवन में जो भी श्रेय है, जो भी अच्छा है वह बाँटने के लिए है।
मैं जिंदा हूँ तो केवल पूज्य बापूजी की वजह से !
सन् २००१ की बात है। मेरा प्लाइवुड का धंधा अच्छा चल रहा था लेकिन ज्यादा मुनाफे के लालच में मैं 'फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर' का काम करने लगा । उसमें मुझे बहुत घाटा सहना पड़ा और मेरे ऊपर डेढ़-दो करोड़ रुपये का कर्जा हो गया । पैसे समय पर न लौटाने के कारण मेरे ऊपर २२ केस हो गये । कई जगहों पर तो कोर्ट ने अरेस्ट वारंट तक निकाल दिये थे । जेल जाने की नौबत आ गयी थी। आखिर कोई रास्ता न निकलता देख परेशान होकर मैंने आत्महत्या करने का र निर्णय ले लिया।
...तो समझ लेना चाहिए कि मोह प्रबल है
मोह (अज्ञान) सारी व्याधियों का मूल है, इससे भव का शूल उत्पन्न होता है।
तुलसी के एक पत्ते पर बिक गये भगवान
जहाँ अपनापन होता है वहाँ प्रीति होती है अतः भगवान को अपना मानो।
भक्तों की सुनते पुकार, सर्वांतर्यामी हैं मेरे करतार !
'पूज्य बापूजी के प्रेरक जीवन-प्रसंग' गतांक से आगे
बापूजी के साथ अन्याय हो रहा है, उनकी जल्द-से-जल्द रिहाई होनी चाहिए
अगर समाज में भाईचारा लाना है तो ब्रह्मवेत्ता संतों के ही प्रभाव-प्रसाद की जरूरत है।
समता और लगन का महत्त्व
समता ऊँचा ब्रह्मास्त्र है। दूसरे कोर्स के बजाय समताप्राप्ति का कोर्स करो, यह सर्वश्रेष्ठ कोर्स है।
सुप्रचार का एक तरीका यह भी...
जो ईमानदारी से गुरुसेवा करते हैं उनमें गुरु-तत्त्व का बल, बुद्धि, प्रसन्नता आ जाती है।
अभेद दृष्टि लायें, चिंतन अनन्य बनायें
अपने को खोजोगे तो एक (परमात्मा) से दिल बँध जायेगा।
क्या है मूल समस्या व उसके समाधान में 'तुलसी पूजन दिवस' का योगदान
सत्यस्वरूप परमात्मा का पता न होना और संसार सच्चा लगना - यही सबसे बड़ी भूलभुलैया है।
तब हमें पता चलेगा कि उत्तरायण कितना मूल्यवान पर्व है !
दुराचार, अश्रद्धा या अहंकार ऐसा दुर्गुण है कि उससे सब योग्यताएँ नष्ट हो जाती हैं।
यह जिनके हाथ लगी उनका जीवन चमक उठा
आप अपना अपमान नहीं चाहते हैं तो दूसरों का अपमान करने से पहले विचार करिये ।
हर हृदय में ईश्वर हैं फिर भी दीनता-दरिद्रता क्यों?
भगवान के भजन से भगवान के ऐश्वर्य के साथ आपका चित्त एकाकार होता है।
जीवन को परमात्म-रस से भरे, जीने की कला सिखाये : गीता
आत्मा का रस जीव को आत्मा-परमात्मा से जोड़ देता है।
जीवन की सारी समस्याओं का हल : गुरु-समर्पण
भगवान और सद्गुरु के अधीन होना यह सारी अधीनताओं को मिटाने की कुंजी है।
बालक गृहपति की एकनिष्ठता
जिसके जीवन में संयम, व्रत, एकाग्रता और इष्ट के प्रति दृढ़ निष्ठा है, उसके जीवन में असम्भव कुछ नहीं है।
दीपोत्सव पर आत्मज्योति जगाओ !
भ्राजं गच्छ। हे पराक्रमशाली मानव ! तू प्रकाश को, आत्मज्योति को प्राप्त कर।' (यजुर्वेद : ४.१७)
बापू आशारामजी को जल्द-से-जल्द छोड़ा जाना चाहिए
ब्रह्मवेत्ता संत के दैवी कार्य में सच्चे हृदय से लग जाना ही उनकी सेवा है।
कर्जदार से बना दिया २ फैक्ट्रियों का मालिक
समदर्शी संतों के दैवी कार्य में भागीदार होने से ईश्वर के वैभव में भी आप लोग भागीदार हो जायेंगे।